Thursday, April 09, 2015

हमारे माँ -पिता हमारी शक्ति बनकर किसी न किसी रूप में हमारे साथ रहते है.

मेरे पापा अब नहीं हैं। मेरे पापा मेरे पास नहीं रहे,पर पिता हैं तो दिल में रहते हैं। मेरे लेखन में रहते हैं , मेरी संवेदनाओं में रचे-बसे हैं। पहले कभी भी लेखनी रुकी नहीं ,लगता रहा वे साथ हैं मन की भावनाएं थमी नहीं ,उनकी प्रेरणा शक्ति बनी रही. छोटी-छोटी बातें सिखलाते ,बार-बार पूछते तो भी बताते , थकते नहीं,रुकते नहीं ,हम पीछे हटते ,आगे मंजिल दिखाते . माँ अनायास चली गईं तो पिता का स्नेह साथ बना रहा. अब पापा के बिना खाली घर सूना सा मायका लगता है. कुछ दिनों से सब कुछ ,हम सभी को भूलने से लगे थे वे, कभी बहुत बुरा लगता ,कभी तसल्ली,माँ की यादों से दूर , हाँ याद करने की कोशिश में अक्सर उलझ जाते थे वे पर , बिना कुछ कहे भी उनकी दृष्टि हमें पुरस्कृत करती रही। उन्ही के सिखाये शब्द बोलने-गाने से वे बहुत खुश भी होते , और हमें लगता उनको कुछ थोड़ी सी राहत ही हम दे सकें. हाँ वटवृक्ष से मेरे पापाजी कुछ कमजोर से लगने लगे थे , उनकी वेदना यथार्थ बनकर हमारा दिल दुखाने लगी थी। शायद उम्र का तकाजा एवं वरिष्टता का शाश्वत सत्य , उनके उज्जवल चेहरे पर परछाइंयां सी डेरा ज़माने लगीं , जो हमें अंदर तक डराने तक लगी, जीवन के कठोर क्षणों , को तो आना ही था ,हमारे पिता को लेकर जाना ही था। पापा नहीं हैं पर उनके दिए गुण,शिक्षा ,संस्कार तो साथ हैं , सच ,हमारे बुजुर्ग दूर चले जाते है पर वे तब भी किसी न किसी रूप में हमारे ही बीच कहीं न कही बने रहते है ,यही नहीं अपने होने का अहसास दिलाते रहते हैं जब भी कभी हम उन्हें दिल से याद करते है,…… हां अब हमारे पापा नहीं हैं.…………

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